एक बात !


एक बात
जो ओठोपे आके बैठी,
जो हर बार आखोंसे बेह जाती
आज उन्हीं आखोंसे झाकती हुई
कुछ यादें, कुछ बातें
कभी मुझसे, कभी तुझसे है मांगती
जीने खुदपे ओढ़कर लफ्ज़ बन जाए वो
ताकि निकलकर सासों के संग इठलाए वो
जो कभी न कहा आज सब कह जाए वो
मगर ये जो बात हैं
बीते उन लम्होसी खास है

ये बात
ख़ामोशीसी है जो भीड़ मैं पुकारती
ख़ामोशी जो आखिर बेजुबा है
जिसकी ख़बर तुजको भी है
जिसका एहसास उसको भी है
फिर भी तू मेहसूस करले
जाने कैसी उसकी आवाज़ है
छुपाए भी नहीं छुपती
यह जाने कैसी बात है ।
                       
                            - निशांत देवेकर

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