दोस्ती निभायी जाती है,
प्यार जताया जाता है,
कुछ रिश्ते जन्म के साथ आते है,
तो कुछ बनाये जाते है,
दुश्मनी भी भुलायी जाती है,
या फिर निकाली जाती है,
पर मुझे अभी समझ नहीं आता
की ये सब हम सोच समझकर करते है ?
या फिर... बस यूंही हो जाता है ?
ये सब होना या करना क्या जरूरी होता है ?
मानो जैसे अपने जन्म के साथ
Terms and conditions policy जैसे हो।
कुछ यैसा है भी... तो
Follow ना करने पर क्या जुर्माना होता है ?
आज तक खुदमे कहीं बैठकर comfort के साथ,
किसी के लिए दोस्त,
तो किसी के लिए
प्यार, रिश्तेदार, दुश्मन, अंजान ।
यैसे कहीं roll निभाता रहा
जैसे ये कोई जिंदगी नहीं,
movie चल रही हो ।
पर ये पल, ये आज कुछ अलग है,
Comfort zone से कहीं दूर,
जैसे कोई नया सफ़र हो ।
अगर इस नये रास्ते पे चल पड़ा,
तो शायद ...
वो दोस्त पीछे छूट जाएगा
जो मुजपे सब लुटाने को तैयार है,
वो लड़की फिर किसी से उतना प्यार ना कर सके
जो आज बगलमे मेरा हाथ थामकर बैठी है,
वो रिश्तेदार गम मैं डूब जाएंगे
जो आज मेरे कही खुशियों के कारण है,
वो दुश्मन भी मुझे भूल जाएगा
जो हर बुरे काम के लिए मुझे जिम्मेदार ठैराता है,
ये सब होने के लिए फिलाल मैं
उस comfort zone से
उतना भी दूर नहीं,
पर अब कौन फिरसे
उस दोस्तो के साथ उतनी मस्ती करेगा
जो सिर्फ हमे खुशियां देती है,
कौन उस लड़की के पीछे उतना पागल होगा
उस से दिल लगाने को,
और इनके चक्कर में फिरसे
कौन दुश्मन बनायेगा
दुश्मनी निभाने को,
क्यों की अब बस mood नहीं
Comfort में लौट जाने को ।
आज ये दिल भी दिमाग की सुन्ना चाहता है,
इस नये रास्ते पे खुदके संग चल पड़ने को,
क्यों की अब सुकून इसी में है ।
- निशांत देवेकर
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