नुक्कड़ ।


सफ़र ।
जो अपने साथ लाता है
कुछ अजनबी, उनके किस्से
थोड़ी थकान
बोहोत सारी मस्ती
वो बस्ता
वो यादे
और
मेरे संग चल पड़ा,
ये रस्ता
कभी तेडा-मेडा
कभी कच्चा
तो कभी जाना पहेचना सा
मगर फिर आती है
नुक्कड़
जहा मैं खड़ा हूं !
जो मुझसे मेरा रास्ता पूछती है
क्यों की ये सफ़र
अब दो रास्तों में बट चुका है,
एक वो रास्ता
जिसकी मेरे इन हालातो को जरूरत है
जिसके सफ़र का पता नहीं
पर उसकी मंजिल मेरी सारी जरूरतें
पूरी कर देगी,
और एक ये रास्ता
जिसकी मंजिल धुंडली है
शायद थोड़ी दूर भी
पर इसके सफ़र की मुझे चाहत थी
क्यों की यिस्से मुझे लगाव है

आखिर,
ये मेरा सफ़र
इस मोड़ पर
मेरी तरफ़
थम सा गया...

                       - निशांत देवेकर

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