की उसके यहां एक शक्स रहा करते थे,
वो शाम को शायद अपना काम ख़तम करके
आंगन में शांति से बैठे वक्त गुजारा करते,
वो वहीं पैदा हुए थे, वहीं पले बड़े,
वहीं जिदंगी गुजरी,
और घर के उसी खुर्सी पे
अपने आखरी सासों को संवारा।
बस यही कहानी थी उनकी
ना इसमें कोई उमीद है नाही जज्बा,
आज हर किसी को
दौड़ना है, उड़ना है,
अच्छी बात है ।
मगर इसी चेहेल पहेल को
उसी के बीच ठैर कर उसे निहारना,
क्या पता वो भी खूबसूरत हो...
इसी चलती ज़िन्दगी की दौड़ में
अब तक मेरे हाथ लगे
कुछ किस्से, कुछ पल,
क्या पता इस ठैराव में कहानियों का एहसास हो...
जैसे खिड़की से बगीचे में लगे
उस कली को फूल होते,
या फिर
अभी अभी हरियाली का हिस्सा हुए उस
पत्ते को पतझड़ के वक्त
जमी को गले लगाने तक कि कहानी ।
बदलते चीज़ों को, लोगो को, मौसम को
महसूस करना,
क्यों कि तुम वही रहोगे जहां कल थे,
बस वक्त बदलेगा ।
दौड़ना, उड़ना मुझे भी कुछ खास पसंद नहीं,
मगर मुझे इस वक्त के साथ चलना है,
ताकि आगे जा कर ठैर सकू,
बिल्कुल उस शक्स कि तरह,
क्या पता..
वो ठैराव भी खूबसूत हो...
- निशांत देवेकर
😍😍😍
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